अनुवाद = अरे जीव! रात्रि समाप्त हो गई अर्थात् रात बीत गई है, उजाला हो गया है। अतः निद्रा त्यागकऱ उठो तथा हरि, मुकुन्द, राम, कृष्ण, हयग्रीव, नृसिंह, वामन, मधुसूदन, पूतनाको मारनेवाले तथा कैटभ नामक असुरका नाश करनेवाले ब्रजेन्द्रनन्दन श्यामसुन्दरका नाम लो। रावणका वध करनेके लिए दशरथनन्दन रामके रूपमें अवतरित हुए, जो यशोदाके लाड़ले हैं, उन गोपालका नाम लो। जो वृन्दावनमें सर्वश्रेष्ठ हैं, गोपियोंके प्रियतम हैं तथा राधिकारमण हैं, त्रिभुवनमें जिनके समान सुन्दर अन्य कोई नहीं है। जो घर-घरसे माखन चुराने वाले हैं, गोपियोंके वस्त्र हरण करनेवाले हैं, ब्रज एवं ब्रजवासियोंके रखवाले, वंशीके द्वारा सबके चित्तको हरण करनेवाले, जो योगियोंके वन्दनीय हैं, तथा समस्त ब्रजवासियोंके भयको हरण करनेवाले हैं, तुम उन नन्दनन्दनका नाम लो। जिनका रूप नवीन मेघोंके समान अत्यन्त ही मनोहर हैं, जो वंशीविहारी हैं, जो मैया यशोदाके नन्दन परन्तु कंसके संहारक हैं, जो निकुञ्जों एवं कदम्ब काननमें रास रचाने वाले हैं, गोपियोंके आनन्दको विशेषरूपसे वर्द्धन करनेवाले हैं एवं प्रेमके भंडार हैं तथा जो पुष्पवाणके द्वारा गोपियोंके कामको बढ़ाने वाले हैं, जो गोपियोंके चित्तको आनन्दित करनेवाले एवं समस्त गुणोंके आश्रय हैं, जो यमुनाजीके जीवनस्वरूप हैं, यमुनाके तटपर नाना प्रकारकी क्रीड़ाएँ करते हैं तथा जो राधाजीके मनरूपी चन्द्रके चकोर हैं – श्रीभक्तिविनोद ठाकुरजी कह रहे हैं – आप लोग मेरी बात मानकर अमृतके समान कृष्णके इन नामों तथा कृष्णके यशका गुणगान करें।
पुस्तकः श्री़गोड़ीय-गीतिगुच्छ, पन्ना न. ९३-९४
सिद्धि-लालसा
राधा कृष्ण प्राण मोर जुगल किशोर। जीवने मरणे गति आर नाहि मोर॥ कालिन्दीर कूले केलि कदम्बेर वन। रतन वेदीर ऊपर बसाब दु जन॥ श्यामगौरी अङ्गे दिब (चुया) चन्दनेर गन्ध। चामर ढुलाबो कबे हेरिबो मुखचन्द्र॥ गाँथिया मालतीर माला दिबो दोंहार गले। अधरे तुलिया दिबो कर्पूर ताम्बूले॥ ललिता विशाखा आदि जत सखीवृन्द। आज्ञाय करिबो सेवा चरणारविन्द॥ श्रीकृष्ण चैतन्य प्रभुर दासेर अनुदास। सेवा अभिलाष करे नरोत्तमदास॥
अनुवाद = राधाकृष्ण युगल किशोर ही मेरे प्राणस्वरूप हैं। इस जीवनमें उनके अतिरिक्त मेरी अन्य कोई गति (आश्रय) नहीं हैं। कब मैं कालिन्दीके किनारेपर स्थित कदम्बवृक्षोंके वनमें रत्नजड़ित सिंहासनपर दोनोंको बैठाकर उनके श्रीअंगोमें चन्दन प्रदान करूँगा तथा चामर ढुलाते हुए उनके श्रीमुखकमलका दर्शन करूँगा? मैं कब मालती फूलोंकी माला गूँथकर दोनोंके गलेमें पहनाऊँगा, उनके अधरोंपर कर्पूरयुक्त सुगन्धित ताम्बूल अर्पण करूँगा तथा ललिता, विशाखा आदि जितनी भी सखियाँ हैं, उनकी आज्ञानुसार दोनोंके श्रीचरणकमलोंकी सेवा करूँगा। श्रीनरोत्तमदास ठाकुरजी श्रीमन्महाप्रभुके दासोंके अनुदासोंकी सेवाकी अभिलाषा करते हैं॥